रेलवे ने भूमि अधिग्रहण के प्रस्तुत नहीं किये कोई भी दस्तावेज तो रेलवे स्वामी कैसे…
दस्तावेजों के हिसाब से भूमि पर लोगों का दावा रेलवे की योजना से भी पुराना….
हल्द्वानी-(अब्दुल मलिक) उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा रवि शंकर जोशी की याचिका पर अंतिम निर्णय दे दिया है। बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा द्वारा एक प्रेस वार्ता कि गई प्रेस वार्ता के दोरान रजनी जोशी समिति कि सहसंयोजक ने बताया कि फैसले में भूमि के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में गोरखा शासकों के कब्जे को माना गया है, बाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा 1815 में नेपाली शासकों को हराकर 1816 में हुयी

सांगुली संधि के तहत जमीन का मालिक माना गया है कम्पनी से ब्रिटिश शासन को भूमि का मालिकाना स्वीकारा गया है, आजादी के बाद भारत सरकार को भूमि का हस्तांतरण स्वीकार किया गया है। सामंती और औपनिवेशिक शासकों को मालिक माना गया है पर आजाद भारत में नागरिक अधिकारों के आधार पर भूमि स्वामित्व को नहीं देखा गया है। जो लोग औपनिवेशिक काल से ही यहां रह रहे थे।
– भूमि पर फैसला लेते समय स्वामित्व विवाद वाली भूमि होने के स्थान पर रेलवे को स्वामी मानते हुए फैसला किया गया है। जबकि रेलवे ने भूमि अधिग्रहण के कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये हैं। इसमें भूमि अधिग्रहण कानून, 1894 का कहीं जिक्र तक नहीं किया गया है। – यह निर्णय रेलवे को बिना कानूनी दस्तावेजों के भूमि का मालिक बनाता है। 1937-1940 की लीज लोगों के पास उपलब्ध है।
जो कि रेलवे के 1959 के नक्शे, प्लान से पहले की है। यह तथ्य दिखाता है कि इस भूमि पर लोगों का दावा रेलवे की योजना से भी पुराना है। और उनका कहना है कि मान्ये उच्च न्यायालय को अपने फेसले पर एक बार पुनर्विचार करना चाहिए और बस्ती बचाओ संघर्ष समिति पुनार्यचिका भी उच्चन्यायालय में डाल रही है