काशीपुर – केंद्र सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के नाम पर किए जा रहे दावों और वास्तविक धरातल पर उनकी क्रियान्वयन की स्थिति में गहरा अंतर दिखाई दे रहा है। वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री एवं उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी की सदस्य अलका पाल ने भाजपा सरकार पर महिला आरक्षण और महिलाओं की सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों को लेकर तीखा हमला बोला है।
उन्होंने कहा कि संसद में बड़े जोर-शोर से पास किया गया 33% महिला आरक्षण विधेयक, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था, आज भी केवल भाषणों और विज्ञापनों तक सीमित है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब यह विधेयक पास हो चुका है, तो अब तक इसे लागू करने में सरकार क्यों टालमटोल कर रही है?
“देश की आधी आबादी को उसका संवैधानिक अधिकार कब मिलेगा?”
अलका पाल ने कहा कि महिलाओं को सशक्त बनाने के दावे तब तक खोखले हैं जब तक उन्हें राजनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदारी नहीं दी जाती। उन्होंने कहा कि देश की महिलाएं केवल वोट बैंक नहीं हैं, वे नीति निर्धारण की भागीदार बनना चाहती हैं। लेकिन भाजपा सरकार उनकी आवाज को अनसुना कर रही है।

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं को 33% आरक्षण देकर ऐतिहासिक कदम उठाया था, जिसका लाभ आज भी गांव से लेकर शहर तक की महिलाओं को मिल रहा है। लेकिन जब बात संसद और विधानसभा की आती है, तो भाजपा सरकार पीछे हट जाती है।
“बेटी बचाओ” का नारा सिर्फ चुनावी जुमला?
महानगर महिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष पूजा सिंह ने प्रदेश में बढ़ते महिला अपराधों को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सरकार के “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” जैसे नारों की असलियत अब जनता के सामने आ चुकी है। एक ओर सरकार महिला सुरक्षा की बात करती है, दूसरी ओर प्रदेश और देशभर में महिला उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
पूजा सिंह ने कहा कि सरकार के कानों तक पीड़ित महिलाओं की चीखें नहीं पहुंचतीं। उन्होंने सरकार पर संवेदनहीनता का आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा केवल नारों और प्रचार में विश्वास रखती है, जमीन पर काम करने में नहीं।
राष्ट्रपति को ज्ञापन, महिलाओं की दृढ़ चेतावनी
महानगर महिला कांग्रेस की ओर से इस गंभीर विषय पर महामहिम राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से सौंपा गया। ज्ञापन में मांग की गई कि महिला आरक्षण विधेयक को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए, ताकि आगामी चुनावों में महिलाएं अपनी जनसंख्या के अनुपात में राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्राप्त कर सकें।
इस विरोध और ज्ञापन कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया, जिसमें लता शर्मा, अजीता शर्मा, रंजना गुप्ता, रोशनी बेगम, सविता, रुचिका अरोरा, फरहीन, संगीता यादव, शमा परवीन, ममता, बंदना डोभाल, राजरानी बत्रा, दीप निशा, श्वेता, आशा श्रीवास्तव, सुजाता शर्मा सहित अनेक महिला कार्यकर्ता उपस्थित रहीं।
एक जुट होती महिलाएं — उठ रही है बदलाव की आवाज
इस कार्यक्रम के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया है कि अब देश की महिलाएं केवल सहन करने वाली नहीं रहीं। वे अब अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर आवाज़ उठा रही हैं। महिला आरक्षण केवल एक राजनीतिक विषय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता का सवाल बन चुका है। और इस सवाल का जवाब अब सत्ता में बैठी सरकार को देना ही होगा।