उत्तराखण्ड ज़रा हटके हल्द्वानी

रेलवे बनाम अतिक्रमणकारी बनभूलपुरा की 29 एकड़ भूमि पर सुप्रीम कोर्ट में आज होगी अंतिम बहस….

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हल्द्वानी – उत्तराखंड का सबसे पुराना और संवेदनशील भूमि विवादों में से एक, हल्द्वानी रेलवे भूमि अतिक्रमण मामला, आज एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच गया है। लगभग 19 साल से जारी इस कानूनी जंग में अब हजारों परिवारों का भविष्य दांव पर है। रेलवे के अनुसार, हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में करीब 29 एकड़ रेलवे भूमि पर 4365 अतिक्रमण हैं। वहीं, स्थानीय लोगों का दावा है कि यह भूमि राज्य सरकार की नजूल संपत्ति है, जिस पर वे वर्षों से रह रहे हैं।

इस विवाद की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई थी, जब याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी ने रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। कोर्ट ने उस समय प्रशासन को कार्रवाई के आदेश दिए, जिसके बाद लगभग 2400 वर्गमीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराया गया था। हालांकि, रेलवे द्वारा सीमांकन (हदबंदी) न कराए जाने के कारण आने वाले वर्षों में फिर से अतिक्रमण हो गया।

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वर्ष 2013 में गौला नदी में अवैध खनन और पुल के क्षतिग्रस्त होने से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह मामला दोबारा चर्चा में आया। 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने रेलवे को 10 सप्ताह के भीतर पूरी भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए। इस पर राज्य सरकार और अतिक्रमणकारियों ने यह कहकर शपथ पत्र दाखिल किया कि संबंधित भूमि नजूल है, लेकिन 10 जनवरी 2017 को कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया।

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि वे अपने व्यक्तिगत आवेदन 13 फरवरी 2017 तक हाईकोर्ट में दाखिल करें और तीन महीने में सुनवाई पूरी की जाए। फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। 6 मार्च 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे को “अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम 1971” के तहत कार्रवाई करने का आदेश दिया, मगर वर्षों तक कोई कदम नहीं उठाया गया।

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याचिकाकर्ता जोशी ने फिर 2022 में नई जनहित याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि रेलवे अपनी भूमि को कब्जामुक्त कराने में असफल रहा है। 18 मई 2022 को हाईकोर्ट ने प्रभावित व्यक्तियों को अपने दस्तावेज़ पेश करने के लिए कहा, लेकिन कोई भी पक्ष भूमि पर अधिकार साबित नहीं कर पाया। अंततः 20 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट ने रेलवे को एक सप्ताह में अतिक्रमण हटाने के निर्देश जारी किए। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां आज इस पर सुनवाई होनी है।

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प्रशासन ने बनभूलपुरा और आसपास के इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लगातार निगरानी में हैं, ताकि किसी भी स्थिति से निपटा जा सके। इस क्षेत्र में वर्षों से बसे हजारों परिवार अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर हैं, जिससे उनका भविष्य तय होगा।

कई दशक पुराने इस विवाद ने अब कानूनी, सामाजिक और मानवीय — तीनों पहलुओं को अपने भीतर समेट लिया है। सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला न केवल हल्द्वानी के हजारों लोगों की जिंदगी को प्रभावित करेगा, बल्कि उत्तराखंड के भूमि प्रबंधन और अतिक्रमण नीति के लिए भी एक ऐतिहासिक नजीर बन सकता है।