ऊधम सिंह नगर – जिले के तराई केंद्रीय वन प्रभाग को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। स्थानीय ग्रामीणों ने विभाग पर लापरवाही, निष्क्रियता और केवल कागज़ी कार्रवाई करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि क्षेत्र में अवैध लकड़ी कटान, खनन और वन्यजीवों की बढ़ती आमद से हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं, जबकि विभाग की गश्त और कार्रवाई “शून्य” जैसी हो चुकी है।
ग्रामीणों का आरोप है कि “जंगल लुट रहा है और वन विभाग केवल फाइलों में सक्रिय है”। बीते कुछ हफ्तों से जंगली जानवरों के खेतों में घुसने से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है, लेकिन विभाग की ओर से न तो कोई त्वरित राहत उपाय किए गए और न ही रात्रिकालीन गश्त को प्रभावी बनाया गया। ग्रामीणों ने कहा कि शिकायत करने के बावजूद वन विभाग हमेशा देर से मौके पर पहुंचता है, जिससे अवैध कटान करने वाले आसानी से भाग निकलते हैं।
वहीं, विभागीय अधिकारियों का दावा है कि क्षेत्र में नियमित पेट्रोलिंग और कार्रवाई जारी है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि जमीनी स्तर पर हकीकत बिल्कुल उलट है।

पर्यावरण विशेषज्ञों ने तराई क्षेत्र को “अत्यंत संवेदनशील पारिस्थितिक जोन” बताते हुए कहा कि यहां मजबूत निगरानी, तकनीकी सर्विलांस (ड्रोन मॉनिटरिंग) और स्थानीय समुदाय की सहभागिता की सख्त ज़रूरत है। उनका कहना है कि यदि हालात पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो यह जंगल और वन्यजीव दोनों के अस्तित्व पर खतरा बन सकता है।
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से मांग की है कि जंगलों में नियमित गश्त बढ़ाई जाए, अवैध कटान और खनन पर सख्त कदम उठाए जाएं और गांवों में जागरूकता अभियान चलाए जाएं ताकि स्थानीय लोग भी संरक्षण में भागीदार बन सकें।
लोगों का कहना है कि यदि हालात ऐसे ही बने रहे तो आने वाले समय में तराई के जंगल और वन्यजीव दोनों पर विनाश का खतरा मंडरा सकता है, जो पूरे क्षेत्र के पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर संकेत है।

