खेल केवल जीत-हार की कहानी नहीं होते। कभी-कभी वे समाज को दिशा देने वाले मंच भी बन जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के दौरान, जब प्लास्टिक के कचरे को कूड़े में फेंकने की बजाय एक नई सोच के साथ रिसाइकल किया गया — और परिणामस्वरूप जन्म लिया एक अभिनव विचार ने: रीसायकल्ड बेंच।
इन बेंचों को बनाने में उपयोग की गईं वे प्लास्टिक की खाली पानी की बोतलें, जो खिलाड़ियों, दर्शकों और आयोजकों द्वारा इस्तेमाल की गई थीं। इन्हें आयोजन स्थलों से बड़े स्तर पर इकट्ठा किया गया, रिसाइकल किया गया और अब ये बोतलें एक नया रूप लेकर हमारे सामने हैं — मजबूत, सुंदर और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की मिसाल बनी हुई बेंचों के रूप में।
एक पहल, कई मकसद

इस पहल के पीछे सिर्फ स्वच्छता नहीं, बल्कि एक व्यापक सोच है — पर्यावरण संरक्षण, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन, और सतत विकास। इसे एक अभियान का रूप दिया गया जिसमें कई स्तरों पर काम किया गया:
- राष्ट्रीय खेलों से पहले 9 जिलों और 13 आयोजन स्थलों पर सूचना, शिक्षा और जागरूकता अभियान चलाए गए।
- ‘मिशन जीरो प्लास्टिक बोतल अपशिष्ट’ के तहत आयोजन स्थलों पर टीमों ने लोगों को समझाया कि हर इस्तेमाल की गई बोतल कूड़ा नहीं, एक संसाधन है।
- 200 से अधिक कूड़ा बीनने वाले और 100 सफाईकर्मियों की टीमों ने बोतलों को एकत्र किया।
- बोतलों के एकत्रीकरण से लेकर पिकअप पॉइंट और डंप यार्ड तक जियो टैगिंग की गई, ताकि प्रक्रिया पारदर्शी और संगठित बनी रहे।
संख्या जो बदलाव का प्रमाण हैं
- 3,00,000 से अधिक प्लास्टिक बोतलें रिसाइकल की गईं
- 9,870 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन को रोका गया
- 2.67 लाख मेगाजूल ऊर्जा की बचत की गई
- पहली खेप में 10 बेंचें तैयार होकर कॉलेज में स्थापित की गईं; जल्द ही 20 और बेंचें पहुंचने वाली हैं
बेंच से बढ़ी बच्चों की सोच
ये बेंचें सिर्फ बैठने के लिए नहीं हैं — ये सीखने, सोचने और समझने की जगह भी बन गई हैं। जहां छात्र बैठते हैं, वहीं उन्हें बताया जाता है कि ये बेंचें किस तरह बनी हैं, और क्यों ये खास हैं। ये एक चलता-फिरता ‘पर्यावरण शिक्षा केंद्र’ बन गई हैं, जो बिना शब्दों के भी बहुत कुछ सिखा रही हैं।
एक संकल्प, एक संदेश
खेल परिसर में छात्र खिलाड़ियों ने यह संकल्प लिया कि वे भविष्य में भी खेल आयोजनों से उत्पन्न कचरे को रचनात्मक तरीके से उपयोग में लाएंगे, और पर्यावरण को संरक्षित करने में अपना योगदान देंगे। यह केवल एक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि एक आंदोलन है, जो यह बताता है कि बदलाव का बीज खेलों के मैदान से भी उपज सकता है।
सबक क्या है?
इस पहल से हमें यह समझ में आता है कि अगर सही सोच, सही योजना और जनसहभागिता हो, तो हम किसी भी वेस्ट मटेरियल को वेल्यू में बदल सकते हैं। हर प्लास्टिक बोतल, जो एक समय में कचरे का हिस्सा होती थी, अब समाज की सेवा में है।
कभी सोचा था —
“पानी की खाली बोतल, किसी की बैठने की जगह बन सकती है?”
उत्तराखंड ने यह कर दिखाया है। और अब ये बेंचें सिर्फ आराम देने वाली नहीं, बल्कि एक सशक्त पर्यावरणीय संदेश हैं — जो हर गुजरते छात्र से कहती हैं:
“सोच बदलो, तो भविष्य बदल सकता है।”