1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान के विश्वसनीय कई पैटन टैंकों के अकेले परखच्चे उड़ा देने वाले अपने मुल्क़ की हिफाज़त के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाले परमवीर चक्र विजेता भारतीय सेना के जाबाँज वीर अब्दुल हमीद को उनकी यौमे शहादत पर खिराजे अक़ीदत
कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद (जुलाई 1, 1933 – सितम्बर 10, 1965) भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर में एक सिपाही थे जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में खेमकरण सैक्टर में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन करते हुए वीरगति प्राप्त की जिसके लिए उन्हें मरणोपरान्त भारत का सर्वोच्च सेना पुरस्कार परमवीर चक्र मिला, यह पुरस्कार इस युद्ध, जिसमें वे शहीद हुये, के समाप्त होने के एक सप्ताह से भी पहले 16 सितम्बर 1965 को घोषित हुआ,
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मगई नदी के किनारे बसे छोटे से गांव धामपुर के एक बहुत ही गरीब परिवार में 1 जुलाई सन् 1933 को अब्दुल हमीद का जन्म हुआ था, हमीद बचपन से ही परोपकारी और दूसरो की मदद करने वाले थे, हमीद के घर में सिलाई का काम होता था जो आज भी उसी गरीबी से जूझ रहा है,

सन् 1954 में एक दिन घर से रेलवे में भर्ती होने की बात कह कर घर से निकला जवान सेना में भर्ती हो गया और 1960 तक वो जम्मू-कश्मीर में ही रहे, उस समय जम्मू-कश्मीर बॉर्डर पर पाकिस्तानी घुसपैठिये वेश बदल कर कश्मीर के रास्ते भारत में घुस कर उत्पात मचाते थे, एक बार अब्दुल हमीद ने भारत में प्रवेश करते हुए कुख्यात इनायत नामक आतंकी को पकड़कर अपने उच्च अधिकारियों को सौपा, इस बहादुरी भरे काम के लिये हमीद की तरक्की हुई और वो लांसनायक बना दिये गये।
1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो हमीद नेफा की सीमा पर तैनात थे, जहां उन्हें पहली बार प्रत्यक्ष रूप से युद्व में भाग लेने का अवसर मिला, पर इस युद्ध में हमीद की मन की चाह पूरी न हो सकी वो तो दिल में देश पर मर मिटकर कोई न छोटा चक्र या पदक प्राप्त करने की दिल में मंशा रखते थे, इसी लिये पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में जाने से पहले उन्होंने अपने भाई से कहा था कि ‘पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिन के पास कोई चक्र होता है, देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर ही लौटेंगे,
10 सितम्बर सन् 1965 , जब भारत और पाकिस्तान का युद्व एक अजीबो-गरीब मोड लेना चाह रहा था, पाकिस्तान का नापाक इरादा अमृतसर पर अपना अधिकार कर लेने का था, अमृतसर से पश्चिम की ओर वीर अब्दुल हमीद कसूर क्षेत्र में तैनात थे, यही से पाकिस्तानी कमाण्डर ने आगे बढकर अमृतसर को घेरने की योजना बनाई हुई थी, अपनी योजना के अनुसार अभेद और शक्तिशाली पैटन टैंकों के फौलादी लाव लश्कर के साथ फौलादी गोले बरसाते हुए दुश्मन फौज भारतीय सेना पर टूट पडी,
परिस्थिति की गम्भीरता को समझने में हमीद को देर न लगी, उन्होंने देखा दुश्मन मुल्क की तैयारी बहुत अधिक है वही टैंकों के इस भीषण आक्रमण को रोकने में मृत्यु निश्चित है लेकिन हमीद को अपनी जान से ज्यादा देश प्यारा था, और वो इस क्षण की प्रतिक्षा में थे वो एक सच्चे सिपाही के रूप में अपने कर्तव्य को निभाना चाहते थे, उन्होंने मन ही मन संकल्प लिया कि वो दुश्मन को एक इंच भी आगे नहीं बढने देगे, बिना समय गुजारे ही तोप युक्त अपनी जीप को एक टीले के सहारे रोक कर यह भारत का वीर पाकिस्तानी पैटन टैंकों पर भीषण गोलाबारी करने लगा,
और देखते ही देखते हमीद ने मिट्टी के घरौंदों की तरह पाकिस्तान के तीन टैंकों को ध्वस्त कर दिया, अजय समझे जाने वाले पाकिस्तान के टैंकों पर वीर अब्दुल के गोले इतने सधे हुए पड़ रहे थे कि गोला पड़ते ही उन में आग लग जाती थी, अपने वीर नेता की बहादुरी देख भारतीय जवान दुगने जोश में भर गये और दुश्मन पर टूट पडे, अपने पैटन टैंक ध्वस्त होते देख दुश्मन सेना का कमाण्डर गुस्से से पागल हो गया। अपने टैंकों पर गोले बरसाने वाले भारतीय को उसकी निगाहें तलाशने लगी, और आखिरकार उस की निगाहों ने वीर अब्दुल हमीद को टीले के पीछे देख लिया,
फिर क्या था पूरी पाकिस्तानी सेना के टैंकों का मुंह हमीद की तरफ मुड़ गया और देखते ही देखते दुश्मन के गोले अब्दुल हमीद की जीप के आगे पीछे दाय बाय सभी ओर गिरने लगे, दरअसल वो और उन की जीप ही अब दुश्मन का निशाना बन चुकी थी, लेकिन वीर अब्दुल हमीद देश पर मर मिटने के लिये पैदा और सेना में भर्ती हुए थे मौत का डर उन्हें कभी था ही नहीं, लिहाजा वो साहस के साथ अपने मोर्चे पर डटे रहे।
आग और गोले के बीच देश का ये बहादुर सिपाही अपनी तोप जीप से पाकिस्तान के चौथे टैंक पर गोला फेंक ही रहा था कि दुश्मन के गोले का एक भीषण प्रहार उन पर हुआ और भारत मां का लाडला ये सिपाही मातृभूमि की रक्षा करते हुए देश पर शहीद हो गया, परन्तु उनके बलिदान ने अपनी सेना में वो जोश भरा की दुश्मन का दिल दहल उठा, वीर अब्दुल हमीद अपनी बहादुरी और जांबाजी के लिए हर भारतीयों के दिलों में धड़कते रहेंगे,