हल्द्वानी- गौलापार क्षेत्र के काश्तकारों ने सिंचाई के लिए पानी न मिलने पर गौला बैराज पर जोरदार प्रदर्शन किया। किसानों का कहना है कि नहर में लंबे समय से पानी नहीं आ रहा था, जिससे उनकी फसलें सूखने की कगार पर पहुंच गई थीं। कई बार अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। अंततः मजबूर होकर किसानों ने बैराज पर प्रदर्शन किया और श्रमदान कर खुद ही पानी की आपूर्ति बहाल की।
सूखी फसलों को देख भड़के किसान
गौलापार क्षेत्र के किसान गेहूं, प्याज, लहसुन, टमाटर जैसी फसलें उगाते हैं, लेकिन नहर में पानी न आने के कारण उनकी मेहनत पर पानी फिरने लगा। काश्तकारों ने बताया कि कई बार सिंचाई विभाग को सूचना दी गई, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ। इस लापरवाही से नाराज होकर शनिवार सुबह बड़ी संख्या में किसान गौला बैराज पर इकट्ठा हुए और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने लगे।
बैराज में भरा कूड़ा बना बाधा
प्रदर्शन के दौरान कुछ किसानों ने बैराज का निरीक्षण किया, तो उन्हें भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा जमा दिखा, जिससे पानी का प्रवाह रुक गया था। बिना प्रशासन की मदद लिए किसानों ने खुद श्रमदान किया और बैराज में जमा कूड़ा हटाना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में पानी का प्रवाह दोबारा शुरू हो गया। इस पहल से किसानों ने प्रशासन को यह संदेश दिया कि अगर अधिकारी समय पर सफाई करवाते, तो यह समस्या कभी खड़ी ही नहीं होती।

किसानों की मांगें
काश्तकारों ने प्रशासन से निम्नलिखित मांगें रखी हैं:
- नहरों की नियमित सफाई कराई जाए, ताकि जल प्रवाह बाधित न हो।
- सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए और पानी की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
- लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, जिन्होंने समस्या की अनदेखी की।
- किसानों की समस्याओं का समय पर समाधान किया जाए, ताकि उनकी फसलें नष्ट न हों।
प्रदर्शन में शामिल किसान
इस आंदोलन और श्रमदान में पूर्व बीडीसी सदस्य अर्जुन सिंह बिष्ट, चंदन राणा, देवेंद्र रवाल, पालू राणा, चंदन सिंह, गोविंद ओली, कमल राणा, हरीश पलड़िया, जगदीश सिंह बिष्ट, धरम सिंह होली समेत कई किसान शामिल रहे।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
किसानों के प्रदर्शन और उनकी पहल की जानकारी मिलने के बाद सिंचाई विभाग हरकत में आया। अधिकारियों ने किसानों को आश्वासन दिया कि जल्द ही नहरों की सफाई करवाई जाएगी और पानी की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी। हालांकि, किसानों ने चेतावनी दी कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो वे उग्र आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे। यह घटना प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करती है, लेकिन साथ ही यह भी दिखाती है कि किसान अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर समाधान निकाल सकते हैं। अगर प्रशासन ने समय पर कदम उठाए होते, तो किसानों को अपनी फसलें बचाने के लिए श्रमदान करने की जरूरत नहीं पड़ती। अब देखना होगा कि प्रशासन अपने वादों पर कितना खरा उतरता है।