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हाईकोर्ट का सख्त रुख: बिना FIR गिरफ्तारी को बताया नियमविरुद्ध, जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल….. 

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नैनीताल – उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य की जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने कहा है कि विजिलेंस विभाग द्वारा शिकायत के आधार पर बिना प्राथमिकी (FIR) दर्ज किए की गई गिरफ्तारी पूरी तरह से नियमों के विरुद्ध है। इस पर नाराजगी जताते हुए अदालत ने अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है।

यह सख्त टिप्पणी न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की अदालत में मुख्य कोषाधिकारी दिनेश राणा की ओर से दाखिल जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आई। सुनवाई में कोर्ट ने कहा कि पिछले 25 वर्षों से जांच के नाम पर मनमानी चल रही है, और कई निर्दोष लोग जेलों में बंद हैं।

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कोर्ट ने कहा कि विजिलेंस, सीबीआई और एंटी करप्शन ब्यूरो की कार्यप्रणालियों में भारी विरोधाभास है। जहां CBI और ACB बिना FIR गिरफ्तारी नहीं करते, वहीं विजिलेंस ने गिरफ्तारी को ट्रैपिंग जांच का हिस्सा बताया। कोर्ट ने इस असंगति पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जब तक कानून स्पष्ट नहीं होगा, तब तक ऐसे मामलों में न्यायिक शोषण होता रहेगा।

न्यायालय ने यह भी उजागर किया कि जांच अधिकारियों को एक साथ 50 से अधिक मामले सौंप दिए जाते हैं, जिससे 90 दिन में चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाती। परिणामस्वरूप, कोर्ट में आधी-अधूरी रिपोर्टें पेश की जाती हैं और निर्दोष आरोपी लंबे समय तक जेलों में बंद रहते हैं।

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कोर्ट ने राज्य की जांच व्यवस्था को ‘दुर्दशाग्रस्त’ बताया और संबंधित विभागों को निर्देश दिए कि वे आपसी समन्वय के साथ स्पष्ट प्रक्रिया तय करें। मामले की अगली सुनवाई की तारीख 8 जुलाई निर्धारित की गई है।

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